भगवान चित्रगुप्‍त जी की आरती, पूजा, विधि, प्रार्थना मंत्र, पूजन मंत्र, स्तुति


भगवान चित्रगुप्‍त ब्रम्हा जी के मानस पुत्र हैं। इनकी उत्पत्ति ब्रम्हा जी के काया से हुई है। इसलिये इन्हें और इनकी संतानों को कायस्थ संज्ञा से नवाजा गया है। भगवान चित्रगुप्त यमपुरी में निवास करते हैं और यमराज के सहयोगी माने जाते हैं। सभी मनुष्‍यों के कर्मों का लेखा जोखा रखने का काम इन्हें सौंपा गया है। यमराज के सहयोगी के तौर पर भगवान चित्रगुप्‍त के पास सभी मनुष्यों के अच्‍छे और बुरे कर्मों का हिसाब रहता है।

इस दिन भगवान चित्रगुप्‍त के साथ उनकी कलम और दवात की भी पूजा की जाती है। कायस्‍थ समाज के लोगों द्वारा चित्रगुप्त पूजा बहुत ही विधि विधान से की जाती है। मान्‍यता है भी है कि, भाई दूज के दिन अर्थात कार्तिक मास की शुक्‍ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन चित्रगुप्‍त भगवान की पूजा करने से मृत्‍यु के बाद नरक की प्रताड़ना नहीं झेलनी पड़ती और बैकुंठ की प्राप्ति होती है।


चित्रगुप्त पूजा का महत्‍व

चित्रगुप्त पूजा के अवसर पर लेखनी, बहीखाता, दवात आदि की भी पूजा की जाती है। चित्रगुप्त पूजा के बारे में ऐसी मान्‍यता है कि कायस्‍थ समाज के लोग इस दिन पूजापाठ करते हैं और कार्यक्षेत्र से जुड़ा कोई काम नहीं करते। इस दिन चित्रगुप्‍त की पूजा करने से स्‍मरण शक्ति में वृद्धि होती है। करियर में तरक्‍की होती है। इस दिन कारोबारी लोग भी अपने प्रतिष्‍ठान में कलम और गल्‍ले की पूजा करते हैं। इससे उनके कारोबार में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्‍की होती है। कारोबारियों के लिए इस पूजा का महत्‍व सबसे खास माना जाता है।


चित्रगुप्त पूजा सामग्री

भगवान चित्रगुप्त की तस्वीर या मूर्ति, सफेद कागज, कलम, दवात, खाताबही, पीले वस्त्र, अरवा चावल, फूल, माला, चंदन, कपूर, तुलसी के पत्ते, गंगाजल, शहद, धूप, दीप, नैवेद्य, मिठाई, फल, पान, सुपारी, तिल, पीली सरसों, जनेऊ, मूली, अदरख, दूध, दही, गुड़ आदि।


चित्रगुप्त पूजा विधि

शुभ मुहूर्त में पूजा स्थान पर पूर्व दिशा में एक चौक बना लें। वहां पर लकड़ी की एक चौकी रखें और उस पर चित्रगुप्त महाराज की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करें। उस पर नई कलम, दवात और खाताबही रखें। फिर पंचामृत से चित्रगुप्त महाराज का अभिषेक करें। फिर अक्षत्, फूल, माला, चंदन, वस्त्र, फल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि चढ़ाएं। पूजा के समय मंत्र पढ़ें। कलम, खाताबही और दवात की भी पूजा करे।

अब आप खाताबही के पहले पन्ने पर स्वास्तिक बनाएं और श्री गणेशाय नम: लिख दें। फिर सफेद कागज पर ॐ चित्रगुप्ताय नमः मंत्र को 11 बार लिखें। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, राम सीता और राधा कृष्ण के नाम लिखें। उस कागज को चित्रगुप्त महाराज के चरणों में रख दें। अपने वर्ष भर का लेखा जोखा भी उस कागज में लिख दें। उसके बाद श्रद्धा पूर्वक पूरे भक्ति भाव से चित्रगुप्त जी की आरती करें। इसके बाद उनसे बिजनेस में उन्नति और परिवार में खुशहाली की प्रार्थना करें।


चित्रगुप्त प्रार्थना मंत्र

मसिभाजनसंयुक्तं ध्यायेत्तं च महाबलम्।लेखिनीपट्टिकाहस्तं चित्रगुप्तं नमाम्यहम्।।


चित्रगुप्त पूजन मंत्र

मषीभाजन संयुक्तश्चरसि त्वं महीतले।

लेखनी-कटनी- हस्त चित्रगुप्त नमोऽस्तुते।

चित्रगुप्त नमस्तुभ्यं लेखकाक्षरदायकम् !

कायस्थ जातिमासाध चित्रगुप्त नमोऽस्तुते ।।


ॐ श्री चित्रगुप्ताय नमः!!


भगवान श्री चित्रगुप्त जी की स्तुति

जय चित्रगुप्त यमेश तव,शरणागतम् शरणागतम् ।

जय पूज्यपद पद्मेश तव, शरणागतम् शरणागतम् ॥


जय देव देव दयानिधि जय दीनबन्धु कृपानिधे।

कर्मेश जय धर्मेश तव, शरणागतम् शरणागतम् ॥


जय चित्र अवतारी प्रभो,जय लेखनीधारी विभो ।

जय श्यामतम,चित्रेश तव,शरणागतम् शरणागतम्॥


पुरुषादि भगवत अंश जय,कास्यथ कुल,अवतंश जय।

जय शक्ति, बुद्धि विशेष तव,शरणागतम् शरणागतम्॥


जय विज्ञ क्षत्रिय धर्म के, ज्ञाता शुभाशुभ कर्म के ।

जय शांति न्यायाधीश तव,शरणागतम् शरणागतम्॥


जय दीन अनुरागी हरी,चाहें दया दृष्टि तेरी ।

कीजै कृपा करूणेशतव,शरणागतम् शरणागतम् ॥


तब नाथ नाम प्रताप से,छुट जायें भव, त्रयताप से ।

हो दूर सर्व कलेश तव,शरणागतम् शरणागतम् ॥


जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम् शरणागतम् ।

जय पूज्य पद पद्येश तव,शरणागतम् शरणागतम् ॥


 

भगवान श्री चित्रगुप्त जी की आरती


ॐ जय चित्रगुप्त हरे, स्वामी जय चित्रगुप्त हरे ।

भक्तजनों के इच्छित, फल को पूर्ण करे॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥


 विघ्न विनाशक मंगलकर्ता, सन्तन सुखदायी ।

भक्तन के प्रतिपालक, त्रिभुवन यश छायी ॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥


रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत, पीताम्बर राजै ।

मातु इरावती, दक्षिणा, वाम अंग साजै ॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥


कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक, प्रभु अंतर्यामी ।

सृष्टि सम्हारन, जन दु:ख हारन, प्रकट भये स्वामी ॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥


कलम,दवात,(कृपाण)शंख,पत्रिका,कर में अति सोहै।

वैजयन्ती वनमाला, त्रिभुवन मन मोहै ॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥


सिंहासन का कार्य सम्भाला, ब्रम्हा हर्षाये ।

कोटि कोटि देवता तुम्हारे, चरणन में धाये ॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥


नृपति सौदास भीष्म पितामह, याद तुम्हें कीन्हा ।

वेग, विलम्ब न लायो, इच्छित फल दीन्हा ॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥


दारा, सुत, भगिनी, सब स्वास्थ के कर्ता ।

जाऊँ कहाँ शरण में, तुम तज मैं भर्ता ॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥


बन्धु, पिता तुम स्वामी, शरण गहूँ किसकी ।

तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी ॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥


जो जन चित्रगुप्तजी की आरती,निस दिन नित गावैं।

चौरासी से छूटैं, चौरासी से छूटैं, इच्छित फल पावैं॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥


न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी, पाप पुण्य लिखते ।

हम सब शरण तिहारे, आस न दूजी करते ॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥


ॐ जय चित्रगुप्त हरे, स्वामीजय चित्रगुप्त हरे ।

भक्त जनों के इच्छित, फल को पूर्ण करे ॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥


!! ॐ श्री चित्रगुप्ताय नमः!!

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