संदेश-सौ हाथ से कमा हजार हाथ से दान कर

 संदेश-सौ हाथ से कमा हजार हाथ से दान कर


अथर्ववेद में कहा गया है कि


शातहस्त समाहार सहस्त्रस्त सं किर।


कृतस्य कार्यस्य चहे स्फार्ति समायह।।


हिन्दी में भावार्थ-हेमनुष्य! तू सौ हाथों वाला होकर धनार्जन कर और हजार हाथ वाला बनकर दान करते हुए समाज का उद्धार कर।


समाज में समरसता बनाये रखने के लिये यह आवश्यक है कि शक्तिशाली तथा समृद्ध वर्ग कमतर श्रेणी के लोगों की सहायता करे पर अब तो समाज कल्याण सरकार का विषय बना दिया गया है जिससे लोग अब सारा दायित्व सरकार का मानने लगे हैं। धनी, शिक्षित तथा शक्तिशाली वर्ग यह मानने लगा है कि अपनी रक्षा करना ही एक तरह से समाज की रक्षा है। इतना ही नहीं यह वर्ग मानता है कि वह अपने लिये जो कर रहा है उससे ही समाज बचा हुआ है। जब धर्म की बात आती है तो सभी उसकी रक्षा की बात करते हैं पर लालची लोगों का ध्येय केवल अपनी समृद्धि, शक्ति तथा प्रतिष्ठा बचाना रह जाता है। कहने का अभिप्राय यह है कि हमें केवल किसी को अपने धर्म से जुड़ा मानकर उसे श्रेष्ठ मानना गलत है बल्कि आचरण के आधार पर ही किसी के बारे में राय कायम करना चाहिये। हमारा समाज त्याग पर आधारित सिद्धांत को मानता है जबकि लालची लोग केवल इस सिद्धांत की दुहाई देते हैं पर चलते नहीं। समाज की सेवा भी अनेक लोगों का पारिवारिक व्यापार जैसा हो गया है यही कारण है कि वह अपनी संस्थाओं का पूरा नियंत्रण परिवार के सदस्यों को सौंपते हैं। दावा यह करते हैं कि पूरे समाज का हम पर विश्वास है पर यह भी दिखाते हैं कि उनका समाज में परिवार के बाहर किसी दूसरे पर उनका विश्वास नहीं है। हम जाति, धर्म, शिक्षा, क्षेत्र तथा कला में ऐसे लालची लोगों की सक्रियता पर दृष्टिपात करें तो पायेंगे कि उनका ढोंग वास्तव में समूचे समाज को बदनाम करने वाला हैं। बहरहाल हमें अपने आचरण पर ध्यान रखना चाहिये। जहां तक हो सके धर्म, जाति, भाषा, कला, राज्यकर्म तथा क्षेत्र के नाम पर समाज को समूहों में बांटने वाले लोगों की लालची प्रवृत्ति देखते हुए उनसे दूरी बनाने के साथ ही अपना सहज त्याग कर्म करते रहना चाहिये।

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