संदेश-हिंसक भाव से परे रहें
संदेश-हिंसक भाव से परे रहें
हिंसा को रोकने के लिये अथर्ववेद में प्रार्थना करते हुए कहा गया है कि
मा नो हिंसनिधि नो ब्रू हि परिणो वृडग्धि मा मां त्वया समरामहिं।
‘‘मै हिंसा न करूं ऐसा उपदेश दो, मेरी रक्षा करो, मुझे किसी पर क्रोध न आये तथा मैं किसी का विरोध न करूं।’’
हमें परमात्मा से प्रार्थना करना चाहिए कि हमारे अंदर कभी हिंसक भाव या क्रोध न आये तथा हम किसी से झगड़ा न करें। यह बात भारतीय दर्शन स्पष्ट रूप से कहता है। आज जब खानपान, रहन सहन तथा पर्यावरण प्रदूषण के कारण् मानव समाज में सहिष्णुता के भाव का ह्रास हुआ है वहीं भारतीय अध्यात्म से उसकी दूरी ने पूरे विश्व समाज को संकटमय मना दिया है। हिंसा किसी परिणाम पर नहीं पहुंचती। कम से कम सात्विक लोगों की दृष्टि से हिंसा निषिद्ध है। राजस प्रवृत्ति के लोगों को भी हिंसा से बचना चाहिए यदि वह राजकर्म से जुड़े न हों। भगवान राम ने रावण के साथ युद्ध किया था पर उनका लक्ष्य सीता को पाना था। भगवान श्री कृष्ण ने भी अपनी माता तथा पिता के उद्धार के लिये कंस को मारा पर धर्म की स्थापना करने के लिये जिस महाभारत युद्ध में श्रीमद्भागवत गीता का उपदेश दिया उसमें हथियार न उठाने की प्रतिज्ञा की। इससे यह बात तो समझ लेना चाहिए कि हथियार उठाने या प्रत्यक्ष हिंसा में लिप्त रहने वाला मनुष्य कभी धर्म की स्थापना नहीं कर सकता चाहे दावा कितना भी करता हो।
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