मनुस्मृति में वेद ही श्रुति

 मनुस्मृति में वेद ही श्रुति


मनुस्मृति कहती है- 'श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेय:'[6] 'आदिसृष्टिमारभ्याद्यपर्यन्तं ब्रह्मादिभि: सर्वा: सत्यविद्या: श्रूयन्ते सा श्रुति:॥'[7] वेदकालीन महातपा सत्पुरुषों ने समाधि में जो महाज्ञान प्राप्त किया और जिसे जगत के आध्यात्मिक अभ्युदय के लिये प्रकट भी किया, उस महाज्ञान को 'श्रुति' कहते हैं।


श्रुति के दो विभाग हैं-


1.वैदिक और


2.तान्त्रिक- 'श्रुतिश्च द्विविधा वैदिकी तान्त्रिकी च।'


मुख्य तन्त्र तीन माने गये हैं-


1.महानिर्वाण-तन्त्र,


2.नारदपाञ्चरात्र-तन्त्र और


3.कुलार्णव-तन्त्र।


वेद के भी दो विभाग हैं-


1.मन्त्र विभाग और


2.ब्राह्मण विभाग- 'वेदो हि मन्त्रब्राह्मणभेदेन द्विविध:।'


वेद के मन्त्र विभाग को संहिता भी कहते हैं। संहितापरक विवेचन को 'आरण्यक' एवं संहितापरक भाष्य को 'ब्राह्मणग्रन्थ' कहते हैं। वेदों के ब्राह्मणविभाग में' आरण्यक' और 'उपनिषद'- का भी समावेश है। ब्राह्मणविभाग में 'आरण्यक' और 'उपनिषद'- का भी समावेश है। ब्राह्मणग्रन्थों की संख्या 13 है, जैसे ऋग्वेद के 2, यजुर्वेद के 2, सामवेद के 8 और अथर्ववेद के 1 ।


मुख्य ब्राह्मणग्रन्थ पाँच हैं-


ऋग्वेद का आवरण


1.ऐतरेय ब्राह्मण,


2.तैत्तिरीय ब्राह्मण,


3.तलवकार ब्राह्मण,


4.शतपथ ब्राह्मण और


5.ताण्डय ब्राह्मण।


उपनिषदों की संख्या वैसे तो 108 हैं, परंतु मुख्य 12 माने गये हैं, जैसे-


1.ईश,


2.केन,


3.कठ,


4.प्रश्न,


5.मुण्डक,


6.माण्डूक्य,


7.तैत्तिरीय,


8.ऐतरेय,


9.छान्दोग्य,


10.बृहदारण्यक,


11.कौषीतकि और


12.श्वेताश्वतर।

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