यह
सोच रानी को तलाश करने चारों दिशाओं में दूत भेजे। वह तलाश करते हुए
पुजारी केआश्रम में रानी को पाकर पुजारी से रानी को मांगने लगे, परंतु
पुजारी ने उन से मना कर दिया तो दूत चुपचाप लौटे और आकर महाराज के सन्मुख
रानी का पता बतलाने लगे। रानी का पता पाकर राजा स्वयं पुजारी के आश्रम में
चले गए और पुजारी से प्रार्थना करने लगे कि महाराज ! जो देवी आपके आश्रम
में रहती है वह मेरी पत्नी है। शिवजी के कोप से मैंने उस को त्याग दिया था।
अब इस पर से शिव प्रकोप शांत हो गया है। इसलिए मैं इसे लिवाने आया हूँ। आप
इसे मेरे साथ चलने की आज्ञा दे दीजिए।
गुसाई जी ने राजा के वचन को सत्य समझकर रानी को राजा के साथ जाने की आज्ञा
दे दी। गुसाई की आज्ञा पाकर रानी प्रसन्न होकर महल में आई। नगर में अनेक
प्रकार के बाजे बजने लगे। नगर निवासियों ने नगर के दरवाजे पर तोरण
बंदरवारों से विविध विधि से नगर सजाया। घर-घर में मंगल गान होने लगे।
पंडितों ने विविध वेद मंत्रों का उच्चारण करके अपनी राजारानी का आवाहन
किया। इस प्रकार रानी ने पुनः अपनी राजधानी में प्रवेश किया। महाराज ने
अनेक तरह से ब्राह्मणों को दान आदि देकर संतुष्ट किया।
याचकों को धन-धान्य दिया। नगरी में स्थान-स्थान पर सदाव्रत खुलवाए। जहाँ
भूखों को खाने को मिलता था। इस प्रकार राजा शिवजी की कृपा का पात्र हो
राजधानी में रानी के साथ अनेक तरह के सुखों का भोग करते हुए आनंद से जीवन
व्यतीत करने लगे तब राजा और रानी प्रति वर्ष सोलह सोमवार व्रत करने लगे।
विधिवत शिव पूजन करते हुए, लोक में अनेकानेक सुखों को भोगने के पश्चात्
शिवपुरी को पधारे ऐसे ही जो मनुष्य मनसा वाचा कर्मणा कर के भक्ति सहित सोलह
सोमवार का व्रत पूजन इत्यादि विविध विधिवत करता है। वह इस लोक में समस्त
सुखों को भोग कर अंत में शिवपुरी को प्राप्त होता है। यह व्रत सब मनोरथों
को पूर्ण करने वाला है।
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