माँ कामाख्या वशीकरण मंत्र

माँ कामाख्या वशीकरण मंत्र

क्या आप माँ कामाख्या वशीकरण मंत्र साधना के बारे में जानना चाहते है ? मां कामाख्या देवी कुल 51 शक्ति पीठों में सबसे शक्तिशाली हैं, जो भारत के असम की राजधानी गुवाहाटी के पास दिसपुर मं कमरू नाम के स्थान पर सदियों से स्थित है। इसका विशेष महत्व शक्ति की देवी सती मंदिर के साथ-साथ तंत्र-मंत्र सिद्धि के लिए भी है। इसके तांत्रिक महत्व के कारण यह प्राचीनकाल से एक अद्भुत तीर्थ बना हुआ है। यहां भगवती की योनि-कुंड के प्रत्येक वर्ष जून माह में  तीन दिनों तक अंबूवाची योग पर्व मनाए जाने की परंपरा है। वास्तव में यह सती के राजस्वला पर्व है, जिसमें विश्व के तांत्रिकों, साधु-संतों, अघोरियों और मंत्र साधकों का जमावड़ा लगता है। ऐसी मान्यता है कि इन तीन दिनों में योनि-कुंड से रक्त प्रवाहित होता है।

माँ कामाख्या वशीकरण मंत्र
धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महादेव शिव की पत्नी सती के हवन कुंड में कूद पड़ने के बाद शरीर का अंग-भंग हो गया। महादेव उसे बचाने के लिए कंधे पर लादे जहां-जाहं गए वहां सती के अंगों के टुकड़े गिरते चले गए। वे जहां भी गिरे कालांतर में शक्ति पीठ के तौर पर विख्यात हो गए। कमरू नामक स्थान पर माता सती की योनि गिरी थी, और यह भगवती के गर्भगृह के रूप में विख्यात पीठ कहलाया।
इसी पीठ अर्थात माता कामाख्या देवी की पूजा-आराधना से मनोवांछित मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। यहां वशीकरण के तंत्र-मंत्र की साधना और सिद्धि जैसे अनुष्ठानिक कार्य पूरे मानोयोग से करने पर मनोवांछित सिद्धि प्राप्ति होती है। इस साधना से व्यक्ति का मनोभाव नकारात्मक से सकारात्मक बन जाता है। कोई चाहे कितना भी मन में नकारत्मक दुष्प्रभाव से ग्रसित क्यों न हो वह मां कामाख्या मंत्र से स्वाभाविक सकारात्मकता और रचानात्मक प्रभाव से अभीभूत हुए बगैर नहीं रह पात है। इसके लिए विशिष्ट सिद्धि की प्राप्ति विधि-विधान से किए गए कामाख्या मंत्र-जाप से ही संभव है।
ऐसी मान्यता है कि कामाख्या-मंत्र के जाप से शक्ति उपासना के तमाम कार्य पूरे हो जाते हैं इसलिए सभी देवी-देवताओं के उपासकों को यह पूजा अवश्य करनी चाहिए। कामाख्या मंत्र को कल्पवृक्ष भी कहा गया है, क्योंकि यह मंत्र मन की हर मुराद को पूरा करता है। हर विध्न-बाधा को दूर करने के लिए इस मंत्र का जाप वर्ष में एक बार अवश्य करने की सलाह दी गई है। सर्वाधिक असरकारी और लोकप्रिय मंत्र विनियोग, ऋषादि न्यास, कर न्यास और अंग न्यास के रूप में इस प्रकार हैः-
ओम् अस्य कामाख्या मंत्रस्य श्री अक्षोभ्य
ऋषिः, अनुष्टुप् छंदः, श्रीकामाख्या देवता, सर्व-सिद्धि-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः।
श्रीअक्षोभ्य-ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप्-छंदसे नमः मुखे,
श्रीकामाख्या-देवतायै नमः हृदि,सर्व-सिद्धि-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।
मां कामाख्या के रूप सामान्य देवी की तरह ही हैं। उनकी दो भुजाएं हैं और वह लाल वस्त्र धारण किए विभिन्न रत्नों से सुशोभित सिंहासन पर बैठी रहती हैं। वह तिलक और सिंदूर लगाए हुए है। उनके मुखमंडल से चंद्रमा समान निर्मलता, उज्ज्वलता और मुखाकृति कमल जैसी सुंदरता सहजता से स्पष्ट प्रस्फुटित होती है।  उनकी आंखें बड़ी-बड़ी हैं और बेशकीमती हीरे-जवाहरात जड सोने के बने आभूषण भी पहने रहती हं।
यह देवी समस्त विद्याओं की जानकार और सर्वगुण संपन्न है। इस कारण इनमें सरस्वती और लक्ष्मी के रूपों के भी दर्शन किए जा सकते हैं। इन्हें त्रिनेत्रा भी कहा जाता है। इस देवी का ध्यान कर ही इन मंत्रों के जाप का लाभ मिल सकता है। कारण कामाख्या सरस्वती और लक्ष्मी से युक्त देवी हैं। कामाख्या देवी का आवाहन् और पूजा करने का मंत्र हैः-
कामाख्ये काम-संपन्ने, कामश्वरी! हर-प्रिय।
कामनां देहि में नत्यिं, कामेश्वरि! नमास्तु ते।।
कामदे काम-रूपस्थे, सुभगे सुर-सेविते।                                                                 
करोमि दर्शनं देव्याः, सर्व-कामार्थ-सिद्धये।।
इस प्रर्थाना का अर्थ इस प्रकार हैः- हे कामाख्या देवी! आप भगवान शिव की प्रिय हैं और कमाना पूरी करने वाली कामना की अधिष्ठत्री हैं। आपसे सदा शुभकामनाओं की अपेक्षा रखता हूं। मेरी कामनाओं को सिद्ध करें। हे कामना को पूर्ण करने वाली देवी! आप सभी कामना देने वाली सुंदरी और देवगणों से सेविता देवि हैं। मैं सभी कामनाओं की सिद्धि के लिए आपके दर्शन करता हूं।
इसके अतिरिक्त कामाख्या देवी का एक महत्वपूर्ण मंत्र 22 अक्षरों का है, जिसे कामाख्या तंत्र कहा जाता है। वह मंत्र हैः- त्रीं त्रीं त्रीं हूंहूं स्त्रीं स्त्रीं कामाख्ये प्रसीद स्त्रीं हूं हूं त्रीं त्रीं त्रीं स्वाहा!!
इस मंत्र के जाप से माहापाप को खत्म किया जा सकता है तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सभी की प्राप्ति संभव है। इनका मूल शक्ति है। तीन त्र-अक्षर वाले इस मंत्र का जाप करने वाला साधक मंत्रोच्चारण में पूरी तन्मयता के साथ रम जाता है और देवी में ध्यानमग्न होकर साक्षात देवी-स्वरूप बन जाता है।
कामाख्या तंत्र में गुरु-तत्व का भी समावेश है तथा इससे ज्ञान की श्रेष्ठता का एहसास होता है। यही कारण है कि ज्ञान के लिए कामाख्या देवी की उपासना की जाती है। इसके अतिरिक्त कामख्या तंत्र से मुक्ति के चारों प्रकार सालोक्य, सारूप्य, सायुज्य और निर्वाण का सौभाग्य प्राप्त होता है। सालोक्य मुक्ति से जहां देवों के संसार में निवास का सौभग्य मिल सकता है, वहीं सारूप्य से ईश्वरत्व के अंश को प्राप्त किया जा सकता है। इसी तरह से सायुज्य देवों की कला से जुड़ना संभव होता है और निर्वाण मुक्ति अनैतिकता वाले नकारात्मक व्यक्तित्व का क्षय होता है।
कामाख्या सिंदूरः विवाहिताओं के लिए देवी कामाख्या के सिंदूर का अतिविशिष्ट महत्व है। इसे बोलचाल की भाषा में कमिया सिंदूर भी कहा गया है, जो कामरुप कामाख्या क्षेत्र में ही पाया जाता है। इसे आसानी से हासिल नहीं किया जा सकता है। इसकी प्राप्ति  विशेष तरह के मंत्र के 108 बार जाप से सिद्ध किया जाता है। उसक बाद ही विवाहिताएं इसका इस्तेमाल मनोकमनाओं की पूर्ति के लिए करती हैं। सदियों से चली आ रही मान्यता और अटूट विश्वास के अनुसार जो कोई कामाख्या सिंदूर का प्रयोग करता है उसपर देवी मां की कृपा बनी रहती है। यह सिंदूर वशीकरण, जादू-टोना, गृह-कलेश, कारोबार में बाधा, विवाह या प्रेम की समस्या या दूसरी तरह की भूत-प्रेत बाधा की समस्याओं को दूर करता है। इसका इस्तेमाल सामान्य तौर पर मांगलिक आयोजनों में किया जाता है।
इस सिंदूर को चांदी की डिब्बी में रखकर मंत्र ‘कामाख्याये वरदे देवी नीलपावर्ता वासिनी! त्व देवी जगत माता योनिमुद्रे नमोस्तुते!! ’ का उच्चारण 108 बार करना चाहिए। इसका जाप चुटकी में सिंदूर लेकर 11 या 7 बार शुक्रवार को शुरू कर सात दिनों तक करना चाहिए। मंत्र के उच्चारण के समय हथेली में गंगाजल, केसर, चंदन को मिलाकर माथे पर तिलक लगाना चाहिए। इस जाप को स्त्री या पुरुष किस के द्वारा भी किया जा सकता है। इसे लगाने के कार्य भी मंत्रोच्चारण के साथ किया जाना चाहिए।
वह मंत्र हैः- कामाख्याम कामसम्पन्ना कामेश्वरी हरप्रिया द्य
कमाना देहि में नित्य कामेश्वरी नमोस्तुते द्यद्य
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